बुधवार, 17 दिसंबर 2014

चन्द्रकान्ता उपन्यास

चन्द्रकान्ता (Chandrakanta) बाबू देवकीनन्दन खत्री (Devakinandan Khatri) रचित अत्यन्त लोकप्रिय उपन्यासों में से एक है। यह बाबू देवकीनन्दन खत्री जी का पहला उपन्यास है जिसकी रचना हिन्दी गद्यलेखन के आरम्भ के दिनों में हुई थी। यह उपन्यास इतना अधिक रोचक था कि इसे पढ़ने के लिये लाखों लोगों ने हिन्दी सीखा। चन्द्रकान्ता की लोकप्रियता से ही प्रेरित होकर खत्री जी ने बाद में चन्द्रकान्ता सन्तति की रचना की।

इस उपन्यास के मुख्य आकर्षण हैं तिंलिस्म और ऐयारी! पूरे उपन्यास में तिलिस्म और ऐयारी के सहारे कथानक को अत्यन्त रोचक और रहस्यमय बनाया गया है। इसकी रोचकता के कारण पाठक बँध सा जाता है और इस उपन्यास को प्रायः एक ही बैठक में पढ़ जाता है।

तिलिस्म तथा ऐयारी से सम्बन्ध रखने के बावजूद भी चन्द्रकान्ता को मूलतः एक प्रेम कथा है।

चन्द्रकान्ता उपन्यास में देवकीनन्दन खत्री जी लिखते हैं

लेखक की ओर से

प्रथम संस्करण से आज तक हिन्दी उपन्यास में बहुत से साहित्य लिखे गये हैं जिनमें कई तरह की बातें व राजनीति भी लिखी गयी है, राजदरबार के तरीके एवं सामान भी जाहिर किये गये हैं, मगर राजदरबारों में ऐयार (चालाक) भी नौकर हुआ करते थे जो कि हरफनमौला, यानी सूरत बदलना, बहुत-सी दवाओं का जानना, गाना-बजाना, दौड़ना, अस्त्र चलाना, जासूसों का काम देना, वगैरह बहुत-सी बातें जाना करते थे। जब राजाओं में लड़ाई होती थी तो ये लोग अपनी चालाकी से बिना खून बहाये व पलटनों की जानें गंवाये लड़ाई खत्म करा देते थे। इन लों की बड़ी कदर की जाती थी। इसी ऐयारी पेशे से आजकल बहुरूपिये दिखाई देते हैं। वे सब गुण तो इन लोगों में रहे नहीं, सिर्फ शक्ल बदलना रह गया है, और वह भी किसी काम का नहीं। इन ऐयारों का बयान हिन्दी किताबों में अभी तक मेरी नजरों से नहीं गुजरा। अगर हिन्दी पढ़ने वाले इस आनन्द को देख लें तो कई बातों का फायदा हो। सबसे ज्यादा फायदा तो यह कि ऐसी किताबों को पढ़ने वाला जल्दी किसी के धोखे में न पड़ेगा। इन सब बातों का ख्याल करके मैंने यह ‘चन्द्रकान्ता’ नामक उपन्यास लिखा। इस किताब में नौगढ़ व विजयगढ़ दो पहाड़ी रजवाड़ों का हाल कहा गया है। उन दोनों रजवाड़ों में पहले आपस में खूब मेल रहना, फिर वजीर के लड़के की बदमाशी से बिगाड़ होना, नौगढ़ के कुमार बीरेन्द्रसिंह का विजयगढ़ की राजकुमारी चन्द्रकान्ता पर आशिक होकर तकलीफें उठाना, विजयगढ़ के दीवान के लड़के क्रूरसिंह का महाराज जयसिंह से बिगड़ कर चुनार जाना और चन्द्रकान्ता की तारीफ करके वहाँ के राजा शिवदत्तसिंह को उभाड़ लाना वगैरह। इसके बीच में ऐयारी भी अच्छी तरह दिखलाई गयी है, और ये राज्य पहाड़ी होने से इसमें पहाड़ी नदियों, दर्रों, भयानक जंगलों और खूबसूरत व दिलचस्प घाटियों का बयान भी अच्छी तरह से आया है।

मैंने आज तक कोई किताब नहीं लिखी है। यह पहला ही श्रीगणेश है, इसलिए इसमें किसी तरह की गलती या भूल का हो जाना ताज्जुब नहीं, जिसके लिए मैं आप लोगों से क्षमा माँगता हूँ, बल्कि बड़ी मेहरबानी होगी अगर आप लोग मेरी भूल को पत्र द्वारा मुझ पर जाहिर करेंगे। क्योंकि यह ग्रन्थ बहुत बड़ा है, आगे और छप रहा है, भूल मालूम हो जाने से दूसरी जिल्दों में उसका खयाल किया जायेगा।

[आषाढ़, संवत् 1944 वि] देवकीनन्दन खत्री

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