रविवार, 21 दिसंबर 2014

चन्द्रकान्ता (Chandrakanta) - 9

देवकीनन्दन खत्री (Devakinandan Khatri)

पहला अध्याय

नवाँ बयान

बीरेन्द्रसिंह और तेजसिंह बाग के बाहर से अपने खेमे की तरफ रवाना हुए। जब खेमे में पहुँचे तो आधी रात बीत चुकी थी, मगर तेजसिंह को कब चैन पड़ता था, बीरेन्द्रसिंह को पहुँचाकर फिर लौटे और अहमद की सूरत बना क्रूरसिंह के मकान पर पहुँचे। क्रूरसिंह चुनार की तरफ रवाना हो चुका था, जिन आदमियों को घर में हिफाजत के लिए छोड़ गया था और कह गया था कि अगर महाराज पूछें तो कह देना बीमार है, उन लोगों ने एकाएक अहमद को देखा तो ताज्जुब से पूछा, "कहो अहमद, तुम कहाँ थे अब तक?"

नकली अहमद ने कहा, "मैं जहन्नुम की सैर करने गया था, अब लौटकर आया हूँ। यह बताओ कि क्रूरसिंह कहाँ है?"

सभी ने उसको पूरा-पूरा हाल सुनाया और कहा, "अब चुनार गये हैं, तुम भी वहीं जाते तो अच्छा होता!"

अहमद ने कहा, "हाँ मैं भी जाता हूँ, अब घर न जाऊँगा। सीधे चुनार ही पहुँचता हूँ।"

यह कह वहाँ से रवाना हो अपनेखेमे में आये और बीरेन्द्रसिंह से सब हाल कहा। बाकी रात आराम किया, सवेरा होते ही नहा-धो, कुछ भोजन कर, सूरत बदल, विजयगढ़ की तरफ रवाना हुए। नंगे सिर, हाथ-पैर, मुँह पर धूल डाले, रोते-पीटते महाराज जयसिंह केदरबार में पहुँचे। इनकी हालत देखकर सब हैरान हो गये।

महाराज ने मुंशी से कहा, "पूछो, कौन है और क्या कहताहै?"

तेजसिंह ने कहा-"हुजूर मैं क्रूरसिंह का नौकर हूँ, मेरा नाम रामलाल है। महाराज से बागी होकर क्रूरसिंह चुनारगढ़ के राजा के पास चला गया है। मैंने मना किया कि महाराज का नमक खाकर ऐसा न करना चाहिए, जिस पर मुझको खूब मारा और जो कुछ मेरे पास था सब छीन लिया। हाय रे, मैं बिल्कुल लुट गया, एक कौड़ी भी नहीं रही, अब क्या खाऊँगा, घर कैसे पहुँचूंगा, लड़के-बच्चे तीन बरस की कमाई खोजेंगे, कहेंगे कि रजवाड़े की क्या कमाई लाये हो? उनको क्या दूँगा! दुहाई महाराज की, दुहाई! दुहाई!!"

बड़ी मुश्किल से सभी ने उसे चुप कराया। महाराज को बड़ा गुस्सा आया, हुक्म दिया, "क्रूरसिंह कहाँ है?"

चोबदारखबर लाया-"बहुत बीमार हैं, उठ नहीं सकते।"

रामलाल (तेजसिंह) दुहाई महाराज की! यह भी उन्हीं की तरफमिल गया, झूठ बोलता है! मुसलमान सब उसके दोस्त हैं; दुहाई महाराज की! खूब तहकीकात की जाय!"

महाराज ने मुंशी से कहा, "तुम जाकर पता लगाओ कि क्या मामला है?"

थोड़ी देर बाद मुंशी वापस आये औऱ बोले, "महाराज क्रूरसिंह घर पर नहीं है, और घरवाले कुछ बताते नहीं कि कहाँ गये हैं।"

महाराज ने कहा, "जरूर चुनारगढ़ गया होगा। अच्छा, उसके यहाँ के किसी प्य़ादे को बुलाओ।"

हुक्म पाते ही चोबदार गया और बदकिस्मतप्यादे को पकड़ लाया।

महाराज ने पूछा, "क्रूरसिंह कहाँ गया है?"

प्यादे ने ठीक पता नहीं दिया।

राम लाल ने फिरकहा, "दुहाई महाराज की, बिना मार खाये न बताएगा!"

महाराज ने मारने का हुक्म दिया। पिटने के पहले ही उसबदनसीब ने बतला दिया कि चुनार गये हैं।

महाराज जयसिंह को क्रूर का हाल सुनकर जितना गुस्सा आया बयान के बाहर है। हुक्म दिया-

(1) क्रूरसिंह के घर के सब औरत-मर्द घण्टे भर के अन्दर जान बचाकर हमारी सरहद के बाहर हो जायें।
(2) उसका मकान लूट लिया जाये।
(3) उसकी दौलत में से जितना रुपया रामलाल उठा ले जा सके, ले जाये, बाकी सरकारी खजाने में दाखिल कियाजाये।
(4) रामलाल अगर नौकरी कबूल करे तो दी जाये।

हुक्म पाते ही सबसे पहले रामलाल क्रूरसिंह के घर पहुँचा। महाराज के मुंशी को जो हुक्म तामील करने गया था, रामलाल ने कहा, "पहले मुझको रुपये दे दो कि उठा ले जाऊँ और महाराज को आशीर्वाद करूँ। बस, जल्दी दो, मुझ गरीब को मत सताओ!"

मुंशी ने कहा, "अजब आदमी है, इसको अपनी ही पड़ी है! ठहर जा, जल्दी क्यों करता है!"

नकली रामलाल ने चिल्लाकर कहना शुरू किया, "दुहाई महाराज की, मेरे रुपये मुंशी नहीं देता।" कहता हुआ महाराज की तरफ चला।

मुंशी ने कहा, "ले लो, जाते कहाँ हो, भाई पहले इसको दे दो!"

रामलाल ने कहा, "हत्त तेरे की, मैं चिल्लाता नहीं तो सभी रुपये डकार जाता!"

उस पर सब हँस पड़े। मुंशी ने दो हजार रुपये आगे रखवा दिया और कहा, "ले, ले जा!"

रामलाल ने कहा, "वाह, कुछ याद है! महाराज ने क्या हुक्मदिया है? इतना तो मेरी जेब में आ जायेगा, मैं उठा के क्या ले जाऊँगा?"

मुंशी झुँझला उठा, नकली रामलाल को खजाने के सन्दूक के पास ले जाकर खड़ा कर दिया और कहा, "उठा, देखें कितना उठाता है?"

देखते-देखते उसने दस हजार रुपये उठा लिये। सिर पर, बटुए में, कमर में, जेब में, यहाँ तक कि मुँह में भी कुछ रुपये भर लिये और रास्ता लिया। सब हँसने और कहने लगे, "आदमी नहीं, इसे राक्षस समझना चाहिए!"

महाराज के हुक्म की तामील की गई, घर लूट लिया गया, औरत-मर्द सभी ने रोते-पीटते चुनार का रास्ता पकड़ा।

तेजसिंह रुपया लिये हुए बीरेन्द्रसिंह के पास पहुँचे औऱ बोले, "आज तो मुनाफा कमा लाये, मगर यार माल शैतान का है, इसमें कुछ आप भी मिला दीजिए जिससे पाक हो जाये!"

बीरेन्द्रसिंह ने कहा, "यह तो बताओ कि लाये कहाँसे?"

उन्होंने सब हाल कहा। बीरेन्द्रसिंह ने कहा, "जो कुछ मेरे पास यहाँ है मैंने सब दिया!"

तेजसिंह ने कहा, "मगर शर्त यह है कि उससे कम न हो, क्योंकि आपका रुतबा उससे कहीं ज्यादा है।"

बीरेन्द्रसिंह ने कहा, "तो इस वक्त कहाँ से लायें?"

तेजसिंह ने जवाब दिया, "तमस्सुक लिख दो!"

कुमार हँस पड़े और उँगली से हीरे की अंगूठी उतारकर दे दी। तेजसिंह ने खुश होकर ले ली औऱ कहा, "परमेश्वर आपकी मुराद पूरी करे। अब हम लोगों को भी यहाँ से अपने घर चले चलना चाहिए क्योंकि अब मैं चुनार जाऊँगा, देखूँ शैतान का बच्चा वहाँ क्या बन्दोबस्त कररहा है।"

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